पिछ्ला वर्ष बीत गया
खट्टी मीठी यादों के साथ
वे दिन लौट कर न आएँगे
यादों में सिमट कर रह जाएंगे |
यह भी जानती हूँ सोचती रहती हूँ
आने वाले कल से उम्मीदें है बहुत
कुछ तो परिवर्तन आएगें
खुशियों की झलक दिखलाएंगे |
इस वीरान जिन्दगी में कुछ नहीं रखा है
तुमने साथ छोड़ा जीवन के सफर में |
यही है संसार की रीत कुछ भी नया नहीं है
जो इस दुनिया में आया है
उसे तो जाना ही है पहले या बाद में |
जो पीछे रह जाता है उसकी आत्मा ही जानती है
कैसे दिन बीतते हैं अकेले
कभी तो ठहराव आएगा
इस उलझन भरी जिन्दगी में |
खुशियों की झलक कभी तो दिखाई देगी
उदासी लिए इस बेरंग जीवन में
वह बीत जाएगी नाती पोतों में
यही आशा है मन में |
आशा सक्सेना
सार्थक चिंतन ! आना जाना जीवन के सतत प्रवाह का अंग है ! इससे कोई भी स्वतंत्र नहीं है फिर प्रकृति के इस नियम से शिकायत कैसी ! अच्छी अभिव्यक्ति !
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जवाब देंहटाएंdhanyvaad sadhana tippanii ke liye
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