01 जनवरी, 2023

आने वाला कल



                                                        पिछ्ला वर्ष बीत गया 

 खट्टी मीठी यादों के साथ 

वे दिन लौट कर न आएँगे 

 यादों में सिमट कर रह जाएंगे |

यह भी जानती हूँ सोचती रहती हूँ 

 आने वाले कल से उम्मीदें है बहुत 

कुछ तो परिवर्तन आएगें 

खुशियों की झलक दिखलाएंगे |

इस वीरान जिन्दगी में कुछ नहीं रखा है 

तुमने साथ छोड़ा जीवन के सफर में |

 यही है  संसार की रीत कुछ भी नया नहीं है 

जो इस दुनिया में आया है 

उसे तो जाना ही है पहले या बाद में |

 जो पीछे रह जाता है उसकी आत्मा ही जानती है 

कैसे दिन बीतते हैं अकेले 

कभी तो ठहराव आएगा

इस उलझन भरी जिन्दगी में |

खुशियों की झलक कभी तो  दिखाई देगी 

उदासी लिए इस बेरंग जीवन में 

वह बीत जाएगी  नाती पोतों में 

 यही आशा है  मन में |

आशा सक्सेना 


3 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक चिंतन ! आना जाना जीवन के सतत प्रवाह का अंग है ! इससे कोई भी स्वतंत्र नहीं है फिर प्रकृति के इस नियम से शिकायत कैसी ! अच्छी अभिव्यक्ति !

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  2. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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