आज मौसम कितना सुहाना है
सर्दी सुबह है गर्मी दोपहर में
शाम को फिर वही
मौसम आ जाना है |
बाहर जाने का
सैर सपाटे का मन है
काश हम भी
सैर सपाटा कर पाते |
मन में तो अरमान न बचे रहते
खूब आनन्द मनाते
यह न रहता कि
हमने सैर नहीं की |
अपने अरमान सजाते गाते गुनगुनाते
दूर जंगल में निकल जाते
मोर संग नाचते
चिड़ियों संग ऊपर आसमान में उड़ते |
छत पर जा रंगीन पतंग
संग पैच लड़ाते
काटा है ,काटा है कह
चिल्लाते खुशी मनाते
धूप निकल आती कठिन होता
पतंग बाजी करना |
माँ के पास जाकर बहुत
प्यार से गुड़ तिल खाते
अपने मित्रों के घर भी जाते
सभी बड़ों के पैर छूते |
जब कोई आशीष देता
मन में गर्व का अनुभव करते
मकर संक्रांति का दिन कैसे कटता
यह भी भूल जाते |
दिन में पतंग बाजी कर
इतने थक जाते
कहाँ सोएं यह तक याद नहीं रहता
खाना खाना ही भूल जाते |
आशा सक्सेना
वाह वाह ! बहुत ही मनोरम रचना ! संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बढ़िया। अभी का मौसम बिल्कुल ऐसा ही है।
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
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