तुम याद उसे कब तक करोगे
क्यूँ उपहास कराओगे जग में
कितनी बार समझाया तुम्हें
यूँही नहीं सताओगे उसको
हंसना हंसाना अलग बात है
यह तो वह समझती है
क्या सही और क्या गलत है
वह जानती है इनकार नहीं करती |
उसे नहीं है आवश्यकता
किसी की समझाइश की
अब वह कोई नादाँन नहीं है
भला बुरा खुद के लिए समझती है |
जितनी बार मिली तुमसे
उसने तुम्हें अपना माना
मध्यस्त कोई नहीं चाहिए
उसके और तुम्हारे बीच |
उसने अनुराग किया था तुमसे
कोई और न था बीच में
यही दुःख उसके मन को साल रहा
वह पहचान न पाई तुमको ||
मुझे बहुत तरस आया उस पर
तभी मैंने तुमसे अनुरोध किया
वह कोई खिलोना नहीं जिससे
खेला और फैक दिया ज़रा समझो |
मन को बड़ी ठेस लगती है
इस प्रकार के व्यबहार से
तुम्ही उसे समझा सकते हो
मुझे यही कहना है तुमसे |
आशा सक्सेना
बेहतरीन सृजन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंआभार बेनामी जी मेरी रचना को चुनने के लिए पांच लिंकों का आनंद के लिए |
जवाब देंहटाएंसार्थक सन्देश देती बेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए साधना |
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