कितने ही मौसम बीत गए
सुहाने मौसम के इन्तजार में
कभी गरमी कभी सर्दी
कभी वर्षा की मार है |
हाहाकार मचा सारे देश में
चैन की सांस नहीं मिलती
विषम परिस्थितियों में
सभी त्रस्त हुए है |
प्रकृति के दिखाए रौद्र रूप से
है विचलित मन कहां जाएं
असंतुलन से जीवन भरा
किससे कहें क्या करें |
अब तो यहीं रहना है
कैसे भी नहीं बच पाएंगे
इस तरह के मौसम से
सहना पडेगा क्या करें |
बड़े समय के बाद
कुछ सुधार हुआ मौसम में
अचानक वायु वेग के कारण
फिर सर्दी ने सितम ढाया |
लोग दुबके गर्म वस्त्रों में
कितने ही ठुठर रहेसूखी i
लकड़ियों को एकत्र कर
कोई अलाव जलाता
उस की ऊश्मा का आनन्द उठाता
पर कार्यों में देर से पहुँच उपस्थि दर्शाता |
मकर संक्रांति आई
वसंत ऋतू का आगाज हुआ
धीरे धीरे संतुलित मौसम हुआ
मौसम खुश रंग हुआ |
आशा सक्सेना
अब तो सुहाना है मौसम ! कुछ समय तो हर मौसम का रौद्र रूप झेलना ही पड़ता है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
जवाब देंहटाएंवाह!! सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
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