06 फ़रवरी, 2023

क्या कुछ कहा तुमने

क्या कुछ कहा तुमने

 ना ही कुछ सुना उसने

 क्या तुम ही बचे थे

उलझने के लिए |

यह क्या आदत है तुम्हारी  

उसके बिना ना चलने की

राह में झगड़ने की 

कभी समझाया तो होता |

इतनी उम्र होते हुए भी

अपना भलाबुरा न समझा

क्यों व्यर्थ झगड़ते हो

किस बात का बदला लेते हो |

 आज तक समझ ना पाई   

तुम क्या चाहते हो उस से  

सब कुछ तो ले लिया

अब कुछ नहीं रहा शेष |

कैसे समझोगे यह बात

समझा कर हार गई है  

उसने शांति से समझाया

कभी रौद्र रूप भी दिखाया |

तुम वहीं के वहीं रहे

चिकने घड़े की तरह

कोई फर्क नहीं तुममें हुआ

वह हारी सब कह कह कर |

अब तो जीवन ऐसे ही कटेगा

काँटों भरी राह पर चलते

नयनों से नीर बहाते

 कंधा किसी का न मिलेगा

 सांत्वना पाने के लिए   |

जब बाढ़ आ जाएगी

उसमें डूबते उतराते आगे बढ़ेगी

अंत तक कोई सहारा ना होगा

जिसकी मदद ली जा सके |



आशा सक्सेना 

3 टिप्‍पणियां:

  1. मन की व्यग्रता और चिंता की सार्थक अभिव्यक्ति !

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  2. आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना की सूचना के लिए पांच लिंकों के आनंद में |

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