अब तक कहाँ रहे
उसकी याद ना आई कभी
कभी बातें तक नहीं की
ऎसी क्या नाराजगी हुई |
पहले कभी मनमुटाव नहीं होता था
अचानक यह सब बखेड़ा हुआ कैसे
क्या किसी से सलाह ली तुमने
तुमने जिसे अपना समझा हो |
घर एक से नहीं बनता दो लोगों की आवश्यकता होती
ना ही एक छत के नीचे चार दीवारी में रहने से बनता
घर पूर्ण होता एक विचार वाले होने से
एक दूसरे का सम्मान करने से |
जब एक साथ रहते घर एक ही रहता
क्या यह सब तुमने नहीं सीखा
किसने दी सलाह तुम्हें |
जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें
उसने यह तो बताया होगा
गाड़ी के दो पहिये होते हैं
दौनों को साथ ही रहना है स्वेछा से|
बैलगाड़ी चल नहीं सकती एक पहिये से
यही है घर की परिभाषा
यहाँ है बड़े छोटे का लिहाज है
एक रहने के लिए |
जिनका हो समान सोच
खुशहाल जिन्दगी के लिए
आशा सक्सेना
घर परिवार की महत्ता को स्थापित करती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 23 मार्च 2023 को 'जिसने दी शिक्षा अधूरी तुम्हें' (चर्चा अंक 4649) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
आभार रवीन्द्र जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए आज के अंक में |
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विश्वमोहन जी टिप्पणी के लिए |
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