साथी ऐसा हो
जिसे भले बुरे का हो ज्ञान
समझाने का तरीका
हो सरल प्रेम भरा |
जो मुझे समझे अपना
दुनिया है मतलब की
सब भूल जाते मतलब निकलते ही
उनकी आवश्यकता नहीं मुझको |
व्यर्थ की बातों में रूचि ना हो जिसकी
जिस पर हो पूरा विश्वास मुझे
मन की हर बात उसे बता पाऊँ
इधर उधर की बातों से
ना हो मन विचलित उसका
विचलित मन हो तब क्या करें
समय यूँ ही व्यर्थ हो जाता है
अपने हाथ कुछ भी नहीं आता
समय हाथ से फिसल जाता |
ऐसे में मन उलझ जाए तो वह चेताए
ऐसे जीवन का होगा क्या उपयोग
जीवन का रंग बे रंग हो जाएगा
पृथ्वी पर भार बढ़ेगा |
आशा सक्सेना
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए ||
हटाएंबहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रूपा जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दीपक कुमार जी टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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