किसी से क्या चाहिए जब
अपनों ने ही साथ ना दिया
कभी दो शब्द स्नेह के
सुनने को तरसते हम भी |
हम घर से दूर रहे
किसी से ना की अपेक्षा कोई
अपने में सक्षम रहे आज तक
किसी पर बोझ नहीं रहे |
जीवन भरा कठिनाइयों से
सुख के पल देखे ना देखे
डेरा डाला दुःख ने जीवन में
सुख दुःख की दूरी देखी |
बात समझ में आई
सुख के सब साथी होते
दुख में कोई साथ नहीं देता
तब साहस का ही सहारा होता |
कठिनाइयों से भागने से लाभ क्या
जब अकेले ही रहना है
जब तक रहा साथ तुम्हारा जीवन में विविध रंग रहे
कभी किसी अभाव का हुआ ना एहसास |
कब सांस बंद हो जाएगी मालूम नहीं
सांस रुकने के पहले शेष काम करना हैं
कोई कार्य अधूरा ना रहे यही सोचना है
|
अपने तरीके से जीवन जिया है अब तक
बंधन नहीं चाहिए कोई
और यही है प्रार्थना प्रभू से
उनकी कृपा रहे सब पर
आशा सक्सेना |
Thanks for the comment
जवाब देंहटाएंअपनी व्यथा खुद से ही कहते हृदय का भावपूर्ण और मार्मिक संवाद आशा जी।सुख के सब साथी दुख में ना कोय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद रेणु जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंवाह ! बहुत सुन्दर सृजन ! बढ़िया रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
हटाएंभावपूर्ण रचना
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