कहीं राह ना भटक जाना
यदि भूले से राह भटके खोज ना पाओगे
अपने को बहुत दुखी पाओगे |
राह है कठिन कंटकों से भरी
कच्ची सड़क ऊबड़ खाबड़ है
चौपायों को चराते यहाँ वहां
यदि उन में फंसे कष्ट पाओगे|
मुझे तो अभ्यास हो गया है
गाँव में रहने का सब से मिल जुल कर
कुए से पानी भर कर लाने का
हाथों से सब कार्य करने का |
अब आदत हो गई है यहाँ रहने की
मन में बस गया है गाँव में रहना
यहाँ के सारे काम काज में रुची रखना
सब से मिलना जुलना |
खुद को अलग नहीं समझना
यही जीवन है यहाँ का
ना कभी हम बदले ना भेद भाव किया
यहाँ के लोगों से देशी भाषा सीखी |
सीखे रीति रिवाज यहाँ के लोगों से
लोग यहाँ के कहते हमें अपना
यही तो यश पाया है हमने यहाँ
किसी ने हमें अपना तो कहा |
आशा सक्सेना
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बेनामी जी टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंग्रामीण जीवन की सादगी और सद्भावना का तो कहना ही क्या ! आत्मीयता, अपनत्व और प्रेम भरा जीवन जीना है तो गाँवों की ओर ही रुख करना होगा !
जवाब देंहटाएंThanks for the comment
हटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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