28 अप्रैल, 2023

एक सैनिक की घर बापसी






अवकाश होते ही राह तुम्हारी देखी 

दिन काटे ना कटता

रातें गुजरीं करवटें बदल  

आशा निराशा में झूलती रही |

मन में शक पैदा हुआ 

कहीं छुट्टिया तो नहीं हुई केंसिल तुम्हारी 

कोई कार्य विशेष तो  आया होगा 

तभी तुम ना आ पाए अभी तक |

मैंने मन को समझाया 

 मुझे आत्मविश्वास पर भरोसा था 

पर विश्वास से भी

समझोता कब तक करती  |

दरवाजे की आहट हुई 

कदम बढे  उसे खोलने 

जैसे ही तुम को देखा

मैं प्रसन्नता से हुई सराबोर  |

खुशी इतनी बढी

कि अश्रुओं का सैलाब 

बहने लगा द्रुत गति से 

रही  बेचैन  अब न जाना ||

आशा सक्सेना 


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