तुम हमारे नहीं हो पाए कभी
प्रार्थना हमने भी की दिल से
पर वही प्यार तुम्हे क्यूँ उससे
मन सोच रहा कारण खोज ना पाया |
उस में ऎसी क्या विशेषता देखी
दो चार दिन योग किया फिर मन उचटा
मन में अवधान ना रहा यह क्या हुआ |
माया मोह में गले गले तक डूबी 
बह चली भव सागर में मझधार में डूबी 
तब याद तुहारी आई पार लगाओ मेरी नैया 
जब कठिनाई सर पर हो तभी याद यदि किया |
सुख में ना याद किया प्रभु को
  दुख में पूजन अर्चन को याद
किया  
तब क्यूँ प्रभू को दोष देते हो 
अपनी गलती का अहसास करो  |
आशा सक्सेना 
  
 
  

धन्यवाद संजय टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पी के लिए |
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