इस संसार में अनेक जीव रहते
अपना जीवन व्यापन करते
एक दूसरे को अपना भोजन
बनाते
बड़े का वर्चस्व होता छोटे
पर
इसी लीक पर चल रहा
आज का समाज
ताकतवर से कोई
जीत नहीं पाता
सदा उसके ही गीत गाता
उसके अनुरूप चलती
मन में सोचता कब तक गुलामी
सहेगा
ईश्वर ने किस बात की सजा दी
है
उसका अस्तित्व कैसे दबा दबा
रहेगा
अब तो ऐसे वातावरण में
जीने का मन नहीं होता
सोचता रहा कैसे भव सागर
पार करू
दूसरा किनारा देख मन मुदित
होता
जैसे ही प्रहार लहर का होता
वह जल में वह विलीन हो जाता |
मन की ऊहापोह की सुन्दर अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए
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