काश हमारे जीवन में
कुछ नया होता तो
हम
सह्लेते
पर घुटने ना टेकते |
यही आस्था है मन में
जता नहीं सकती सब को
यही समस्या है मेरी, किस को याद करू
कैसे उसे हल करू अपना मानूं |
है यह मन चंचल का प्रताप
कभी सोच नहीं पाई
कोई हल नजर ना आया
कोई निष्कर्ष निकाल नहीं पाई |
मन में धैर्य का अभाव रहा
तभी नतीजा ना मिल पाया
इस धैर्य को कैसे प्राप्त करूं
किसे गुरू स्वीकारूं|
स्वयं पर विश्वास रखिये और आत्मनिर्भर बनिए ! अपनी सहायता अपना मार्गदर्शन स्वविवेक से बढ़ कर और कोई नहीं कर सकता !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिये |
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