है कितनी समानता दोनों में
कभी सोच कर देखना
उसमें तुममे है यह भी विचार करना
तभी दौनों में इतनी पटती है |
उसे आडम्बर रास नहीं आता
मन में दिखावा चोट पहुंचाता
तुम भी उससे कम नहीं हो
छोटी बातों पर बुरा मानते हो |
तुम भी ऐसा ही व्यबहार करते हो
जैसा अपना सम्बब्ध होगा
वैसा ही व्यवहार दूसरे से होगा |
हालाकि मन तो दुखेगा|पर क्या करें
|ईश्वर ने नजाने क्या सोच कर
दौनों की जोड़ी बनाई है
तब भी जब दौनों में तकरार होती है |
सुलह के लिए बड़ों की जरूरत होती है
यही बात मुझे बेचैन करती है
मेरे मन का संतुलन डगमगाती है
मुझे किसी बात का कष्ट होता है
यह भी किसी से बाट नहीं सकती
मैं क्या करूं किससे कहूँ |
आशा सक्सेना
सब भूल कर साहित्य सृजन में मस्त रहिये !
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