था  इन्तजार  तेरा बड़ा होने का 
था  इंतज़ार तेरा दुनिया में  बेसब्री से 
तुम आए जब पहली बार पालने
में 
थाली बजी ड्रम बजे इस अवसर
पर 
खुशियाँ मनाई सोहर गीत गाए
सब ने |
घुटनों चले  उंगली पकड़ी 
चलना सिखाया 
गिरते पड़ते उठना सीखा 
चार कदम चलना सीखा |
सबने बड़ी खुशिया मनाई 
पांच वर्ष में पट्टी पूजन
करवाया 
फिर शाला में भर्ती करवाया 
जीवन की गाड़ी आगे बढ़ने लगी  |
माता पिता के  अरमान थे  जाने कितने
 वे भी पूरे ना हो सके
 प्रार्थना भी नहीं सुनी प्रभु ने  
उस पर दया दृष्टि भी
ना  दिखाई |
क्या यही भाग्य में लिखा था
उसने  सब कार्यों को प्रभु के हाथ छोड़ा 
अब ईश्वर का सहारा लिया 
किसी ने आशीष दिया आत्मबोध
जाग्रत हुआ |
आया है  साहस खुद मैं हर  समस्या को झेलने का 
 अब है इतना साहस उसमें  
आत्म शक्ति जाग्रत हुई है
नहीं चाह बैसाखी की 
अपने पैरों पर खड़ी हुई
है   आश्रित नहीं किसी की |
आशा सक्सेना 
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंYjß
हटाएंधन्य वाद बे नामी जी टिप्पणी क लिए
हटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंजीवन की व्यथा कथा ! भावपूर्ण रचना !
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