सारा जीवन बीत रहा
पर संतोष ना मिला कहीं भी
जीवन एक किराए की झोंपड़ी
मन को आराम मिला ना मिला |
कविता लिखने से मन उचटा
ना कोई नये शब्दों का काफिला मिला
चलता रहा आगे आगे
ना किसी ने रोका टोका नाहीकोई ने इनकार किया |
चलने लगा दीवानगी की राह पर
बिना सही मार्ग खोजे
लोगों ने दीवाना समझा
पर तुमने मुझे क्या समझा
यह आज तक तक ना बताया |
सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी
हटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद टिप्पणी के लिए |
हटाएंमन का क्या... भटकता ही रहता है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन ।
धन्यवाद सुधा जी
जवाब देंहटाएंमन तो होता ही है छले जाने के लिए ! सुन्दर सृजन !
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