है विंदास मन की
किसी के साथ नहीं है
अपनी सोच पर है कायम
अनजान नहीं है |
अपने मन की करने वाली जिद्दी है
कहना किसी का नहीं मानती
खुद सोचना वही करना
यही समस्या है |
तभी समाज से हुई निष्काषित
मन माना या नहीं वही जानती
अपने आप को वही पहचानती
खुशी की हद क्या है
जीवन के रंगों से उसने प्यार किया है |
आशा सक्स्रना
है विंदास मन से
जवाब देंहटाएंकिसी के साथ नहीं है
अपनी सोच पर है कायम
अनजान नहीं है ..
बहुत अच्छी रचना
धन्यवाद कविता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंमन की करने वाले किसी की सुने कैसे...
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन।