कंकड़ कंकड़ में शिव शंकर
रहा उनका घर भव् सागर में
मन ने जो कुछ सोचा
एक दम सही सोचा |
वे हमारे इतने नजदीक
जब याद किया उनको
वे चले आए क्षणों के अंदर
उनने पूरे किये अपने किये
वादे को |
निभाया अपना प्रेम मानव के
लिए
दी सही सलाह सब को
जो उनसे था अपेक्षित
यही सब कहते हर कंकर में
शिव शंकर |
जब शिव जी भव सागर में में
घूमें
सुख दुःख देखा सब का
सरल चित्त होने से
किसी को ना दिया श्राप
क्षमा यहाँ रहने वालों को
किया
केवल सहायक हुए यहाँ
लोगों के कष्टों को मिटाने
में
तभी कहलाते कण कण में शंकर बसे
हैं
सब की पीड़ा हर लेते हैं
हैं दया के स्वामी यही है विशेष शंकर में |
ॐ नमः शिवाय
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