05 जुलाई, 2023

बचपन की यादें

तुम्हारे  बचपन की हर घटना  याद है मुझे 

भूल नहीं पाती वे दिन कैसे  कटे 

रात भर जाग कर गुजरती 

सोने ना  दिया तुम्हारे रोने ने |

कितने लालच  दिए तुम को 

तुम अड़े रहे अपनी जिद्द पर 

यह रोज की आदत थी तुम्हारी |

कहना ना मानना 

अपनी जिद्द पर अड़े रहना 

आज भी किसी बच्चे को 

जब रोते देखती हूँ 

तुम्हारी याद आती है

खोजाती हूँ अपनी यादों में तुम्हारा  बचपन 

कभी याद आता है तुम्हारा नृत्य

 मेरी' तिल्लेवाली साड़ी खराब हो गई ''

छत पर कभी गीत' गाना 

मम्मीं  ओ मम्मी  तू कब सास बनेगी '|

तुम्हारा पीछे के मकान में

बर्तनों पर गिरना बेहोश होना 

मुझे पसीना आया था डाक्टर को घर बुलाया था 

ऐसे हादसे चाहे जब हो जाते थे 

यह जरूर था तुम एक रुपया हाथ में लेते ही

 चुप हो जाते थे हर बात मान लेते थे |

ना किसी से भय ना ही चोट की फिक्र 

यही जीवन का सबसे सुन्दर समय था 

तुम्हारा बचपन भूल नहीं पाती 

आशा सक्सेना 


1 टिप्पणी:

  1. धन्यवाद रवीन्द्र जी मेरी रचना को आज के अंक में स्थान देने के लिए

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