वह देखती राह तुम्हारी
द्वार खुलते ही सड़क पर
नजर जाती वह झांकती
दूर तक सड़क दिखाई देती |
पर तुम्हारा पता ना होता
फिर वही क्रम जारी रहता
अचानक कोलाहल होता
आहट दरवाजा खुलने की होती
वह जान
जाती खवर तुम्हारे आने की
जो खुशी उसको होती किसी और
को नहीं
बड़ी मुश्किल से अवकाश मिलता तुम्हें
पर मन मार कर इन्तजार करती
आने पर इतनी खुश होती
खुद को ही भूल जाती|
आशा सक्सेना
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Your reply here: