जब भी बदलाव करना चाहो
अनुभवोंं से व्यवधान आता |
मन ने जो सोचा वह रूप नहीं दिखा
रूप बदल सा गया चाँद सा ना रहा |
ना ही कोई और रूप विशेष रहा
दूर से जो दिखता चाँद पर
अब तुलना के योग्य नहीं वैसा
यह तो कभी सोचा ना था
ना ही पनपी कोई संस्कृति धरती की तरह |
उबड़ खाबड़ सतह उसकी जिस पर कोई सड़क नहीं
जल नहीं अनाज नहीं सतह समतल उसकी नहीं
बस खुशी है आदमी के मन में
उसी के विचारों को लिपिबद्ध किया कविता में |
मन के समुन्दर में गोता लगाकर
अपने भावों को दर्शाया कविता में |
भारत ने परचम फहराया चन्द्रमा की सतह पे |
आज है खुशी सर्वत्र सारे विश्व में
भारत हुआ सफल अपने अभियान में
भारत हुआ अग्रणी चार देशों में से एक
सारे अन्तरिक्ष विज्ञान जगत में |
यही भाव दिखाई दिए आज की कविता में
इसी से फिर सोचा हमने
कविता का रूप निराला बदला
अपार प्रसन्नता के लिए |
आशा सक्सेना
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