दर्द दिल तुम क्या जानो
जब दिल का हुआ नहीं एहसास कभी
छोटा सा दिल है भार बहुत है
मन ने गहराई से खोजा 
अपनों पराओं का भेद फिर भी ना किया 
मन हुआ उदास जब खोज पूरी ना हुई 
मैं किसी की ना हो पाई कोई मेरा ना हुआ 
यही कमीं रही मन में 
सच्चे मित्र को ना पहचाना 
भले बुरे का ज्ञान ना हुआ 
मन उदासी से भरा 
किसी ने ना अपनाया मुझे 
धीरे धीरे ज्ञान हुआ 
है मुझमें और दूसरों में भेद क्या 
एक खाली खोखला वर्तन 
बेनूर जीवन हुआ तुम्हारे बिना 
अब कोई आकर्षण नहीं रहा इसमें 
अब दुनिया पर से भी
 विश्वास उठ
गया है 
खुद का भी पता नहीं
आगे क्या होने व़ाला है  
पर आगे पीछे की क्या सोचे 
शायद भाग्य में यही रहा |
आशा सक्सेना 
मार्मिक रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद प्रकाश जी टिप्पणी के लिए |
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