काली कमली पहन पीली कछोटीकमर में बांधी
हाथ में बांस की बाँसुरिया जब बजाते कान्हां
गाँव की ग्वालिन दौड़ी चली आतीं
हाथों का काम छोड़
राधा रानी राह देखतीं जमुना के तट पर
कुंजन में कान्हां के इन्तजार में
सब ने एक साथ नृत्य किया
पूरे दिल से रमें उसमें
फिर से जब न्रत्य बंद होता
सब लौटते अपने घरों को |
पर राधा को बहुत ईर्ष्या हुई
कान्हां की बासुरी से
उसे अपनी सौतन ठहराया
अपनी नाराजगी दर्शाई
मीठी मुस्कान लिये कान्हा ने
राधा की बांह पकड कहा बहुत प्यार से
तुम ही तो मेरी शक्ति हो
यह बॉसुरी सात सुरों की प्रतिछाया
मै तुम बिन हूँ अधूरा
तभी तो तुम्हारा नाम
मेरे नाम के पहले लिया जाता |
आशा सक्सेना
वाह ! बहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए |
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