14 अक्टूबर, 2023

सुबह से शाम तक

 

सुबह से शाम तक जीवन

 जीवंत करने का अरमां

मन में रहा

किसी से सलाह ना ली |

जैसे ही  समय बीता उम्र बढ़ने लगी

उम्र की कठिनाइयां ले साथ 

कोई दया नहीं हो  पाली किसी की

शायद मुझे यह भी मंजूर ना था|

तभी उलझने बढ़ती गईबढ़ती उम्र  के साथ

आकांक्षाएं कम ना हुई,बढ़ती गईं

 दौनों की दूरियां स्थिर होती  जा रही

घटने का नाम ना लेती  

जीवन कठिन पहेली सा  हो जाता

जिससे जीने में कठिनाई होती

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