सुबह से शाम तक जीवन
जीवंत करने का अरमां
मन में रहा
किसी से सलाह ना ली |
जैसे ही समय बीता उम्र
बढ़ने लगी
उम्र की कठिनाइयां ले साथ
कोई दया नहीं हो पाली किसी की
शायद मुझे यह भी मंजूर ना था|
तभी उलझने बढ़ती गईबढ़ती उम्र
के साथ
आकांक्षाएं कम ना हुई,बढ़ती गईं
दौनों की दूरियां स्थिर होती जा रही
घटने का नाम ना लेती
जीवन कठिन पहेली सा हो जाता
जिससे जीने में कठिनाई होती
बहुत ही सुन्दर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अभिलाषा जी टिप्पणी के लिए |
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