मेरी सखी आई है
अनुभवों की दुकान साथ लाई है
यह तक नहीं सोचा उसने |
उसके अनुभव और हम
में कोई तालमेल है या नहीं
मन में इच्छा हो या नहीं
पर उसको तो सुनना ही है |
जो कुछ सुना उस का
पालन भी करना है
यदि ऐसा नहीं किया
वह नाराज हो जाएगी |
फिर उसे मनाना होगा मुश्किल
बहुत नखरों के बाद
वह मन पाएगी
फिर से खुशी आ पाएगी |
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