27 नवंबर, 2023

अंतर दौनों में

 


कभी मुझे भी उस दृष्टि से देखा होता

मुझ में और भैया में अंतर ना किया होता

मैं भी तुम्हारी अपनी होती दो कुल की प्यारी होती

मैं भी अपने  कर्तव्य निभाती |

पूरे मन से  सब के समक्ष आती  

ससुराल में वही सन्मान पाती

 दूसरों को दिल से अपनाती

तुम्हारा  सर उन्नत होता

जब  दो कुलों में प्यार बांटती |

यूँ तो कहते हो बेटी और बेटे  में

 कोई भेद नहीं किया कभी तुमने

पर अब स्पष्ट दिखाई देता है

कितना अंतर है  मुझ में और भैया में |

जब भी कोई बात होती मुझे पराई कहकर

 कर मन को ठेस पहुंचाई जाती

कभी पराया धन कहा जाता

कहीं मैं इस  घर को भी अपना ना समझ लूं |

आई हूँ महमानों की तरह वही हो कर रहूँ

अपनी सीमाएं नहीं भूलूँ

 यही बचपन से  सिखाया गया मुझको

मैंने भी अंतर को समझा मन में सहेजा है  |

आशा सक्सेना 


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