जीवन की राह हुई भूल भुलिया जैसी
जब भी कदम बढाए उसमें फँस
कर रह गई
जब भी आगे बढ़ना चाहां राह नजर
ना आई
कदम बढाए दीवार से टकराई
आगे बढ ना पाई |
बचपन में कोई कठिनाई ना थी जीवन
चलता रहा सरलता से पर
मुझे आगे के जीवन का अंदाजा
न था
जब उम्र बढी जीवन में झमेले ने रोका
जितनी कोशिश की उतनी ही उलझती
गई
भूल भुलैया से
निकलने में किसी ने मार्ग दर्शन ना दिया |
दो कदम भी ना बढे
मेरे मैं जहां थी वहीं रही
जहां से अन्दर
प्रवेश किया था वहीं खुद को खडा पाया
कुछ समय बाद अपने को वहीं पाया आगे कोई राह ना
मिली
जितना आगे बढ़ती वहां का मार्ग बंद हो जाता |
कोई सीधा मार्ग नजर ना आया
ऐसी भूल भुलैया में फँस कर रह गई
कोई सीधा मार्ग न मिला
जीवन में आगे बढ़ने की राह अवरुद्ध हुई |
आशा सक्सेना
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद बेनामी जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
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