शब्दों की रीढ़
है अधूरा दीपक का जीवन
अपने सहायकों के सिवाय
बिना तेल और बाती के
जीने का अधिकार नहीं |
जब तक समीर ना हो तब भी
उसका भी है अधिकार
तेल और बाती के अलावा
दीपक के जलने में |
है आवश्यक चुने गए
शब्दों की रीढ़ अभिव्यक्ति
के लिए
इनके बिना खड़े होना
संभव नहीं होता अभिव्यक्ति
के लिए |
यदि शब्दों की रीढ़ में कोई
कमी हो
जीना कठिन हो जाता
हारा थका जीवन
खिचता जाता अभिव्यकि का |
आशा सक्सेना
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