10 जनवरी, 2024

मन आहत होता


सूनी आँखे हैं  आंसू न रहे अब 

मन टूट गया दुनिया देख 

जब भी कोई समाचार पेपर में पढ़ते

सोचने पर बाध्य होते |

न रही संवेदना लोगों में 

खोज रहे हैं सब ओर उसे  

मन में कटुता और बढ़ जाती

जब भी कोई बहस देखती टीवी में |

सम भाव से जीने नहीं देते

 मन को कई बातें सही प्रतीत नहीं होतीं

 पर उन्हें जैसी वे हैं वही देखना पड़तीं 

मन मसोस कर रह जाते |

 बढ़ती दरिंदगी पर लेख पढ़ कर 

 देख महिला जागरण पर भाषण 

कहने को तो महिलाओं का उत्थान हो रहा 

पर क्या वास्तव में जो दिखाई देता 

वह वैसा ही होता है समाज में |

 नेता भी दोहरी मानसिकता के होते 

मंच पर और घर पर 

व्यवहार अलग अलग होता  

 घरेलू हिंसा से बाज नहीं आते 

 मुंह पर मुखौटा लगा रखा है |

आशा सक्सेना 

            

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