मुझे यह क्या हुआ है 
मन हर कार्य से उचटा हुआ है 
मुझे कुछ भी अच्छा  नहीं लगता 
कभी सोचा न था ऐसे भी दिन आएगें | 
मुझे अब कुछ नहीं सूझता 
लगता है  मैं कुछ न कर पाऊंगी 
धरती पर बोझ हो कर रह  गई हूँ 
जीवन में कुछ ना कर पाई |
यही मुझे अब खलता है 
अकर्मण्य आखिर कैसे हो गई हूँ
 यह तक  जान न सकी अब तक 
                     यह कैसी अजीब बात है  |
आशा सक्सेना
ACCHI KAVITA
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अरुण जी टिप्पणी के लिए
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
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