महफिल में दीपक सोच रहा अकेला
है वह कितना अकेला सहभागियों के बिना
पहले वह सोचता था उसे किसी की जरूरत नहीं
तभी चला आया अकेले महफिल में |
यहाँ देखा वह ही अकेला था
कोई न था उसका साथ देने के लिए
कीट पतंगेपूँछ रहेथे कहांगए तुम्हारे सहचर
कोई जबाव न था उसके पास
तेल और बाती ने दी दस्तक दरवाजे पर
दीपक ने झांका द्वार खोल दिया
समीर ने भी साथ दिया
जल उठी दीप शिखा अपनों की महफिल में
कभी घटी कही बढ़ी वह महफिल में
फिर भी कमीं नजर आई दीपक को
रहा अन्धेरा ही नीचे उसके मिट न सका
दीपशिखा थरथरा कर कांपी
समीर की गति देख कर
और विलीन होगई व्योम में
दीपक ठगा सा देखता रहा
आशा सक्सेना
बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुमन जी टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंThanks
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