भीड़ भरे बाजार में
एक मूक दर्शक सी खड़ी हूँ
कई लोग लगे मोल भाव में
कभी झुके तो कभी अड़े हैं
देख सजी दुकानों को
मन करता सब कुछ ले लूं
इतने में एक क्रेता ने
बार बार कीमत पूँछी
सब्जी वाली तुनक गयी
गुस्से में नाक फुला बोली
यह सब लेने की
है तेरी औकात नहीं
चल निकल यहाँ से
ना कर मेरा समय खोटी
पर वह कैसे टल जाता
अपमान कैसे सह पाता
लगा आवाज बढाने में
तोल मोल बदला शोर में
हुई बारिश अपशब्दों की
हाल बद से बदतर हुआ
छीनाझपटी मारामारी
हुई हावी पुरजोर
अवसाद से मन भरा
कई प्रश्नों ने घेरा
ऐसा क्यूं होता है ?
हर वस्तु का मूल्य
क्यूं सही नहीं होता ?
यहाँ सीघा ठगा जाता
चतुर सयाना सब पाता
पर मुझ सा रह जाता
डरा हुआ सहमा सा
क्या हर हाट में
बाजार में यही होता है ?
सोच सोच कर थक जाती हूँ
इस मोल भाव की दुनिया में
जीवन से कटती जाती हूँ
भीड़ भरे बाजार में
जाने कहाँ खो जाती हूँ
खुद को बहुत अकेला पाती हूँ |
आशा
एक मूक दर्शक सी खड़ी हूँ
कई लोग लगे मोल भाव में
कभी झुके तो कभी अड़े हैं
देख सजी दुकानों को
मन करता सब कुछ ले लूं
इतने में एक क्रेता ने
बार बार कीमत पूँछी
सब्जी वाली तुनक गयी
गुस्से में नाक फुला बोली
यह सब लेने की
है तेरी औकात नहीं
चल निकल यहाँ से
ना कर मेरा समय खोटी
पर वह कैसे टल जाता
अपमान कैसे सह पाता
लगा आवाज बढाने में
तोल मोल बदला शोर में
हुई बारिश अपशब्दों की
हाल बद से बदतर हुआ
छीनाझपटी मारामारी
हुई हावी पुरजोर
अवसाद से मन भरा
कई प्रश्नों ने घेरा
ऐसा क्यूं होता है ?
हर वस्तु का मूल्य
क्यूं सही नहीं होता ?
यहाँ सीघा ठगा जाता
चतुर सयाना सब पाता
पर मुझ सा रह जाता
डरा हुआ सहमा सा
क्या हर हाट में
बाजार में यही होता है ?
सोच सोच कर थक जाती हूँ
इस मोल भाव की दुनिया में
जीवन से कटती जाती हूँ
भीड़ भरे बाजार में
जाने कहाँ खो जाती हूँ
खुद को बहुत अकेला पाती हूँ |
आशा