19 अगस्त, 2020

आराधना


प्रति दिन नैवेद्ध चढ़ाया
 आरती की दिया लगाया
घंटी बजा कर की आराधाना   
किया नमन ईश्वर को मन से   |
पर शायद ही कभी जांचा परखा 
 कितनी सच्ची आस्था है मन में
 या  मात्र औपचारिकता निभाई है
दैनिक आदतों की तरह जीवन में |
दे रहे धोखा किसे ईश्वर को या खुद को
इतने समय भक्ति भाव में डूबे रहे  
पर आस्था ने अपना रंग न जमाया  
मन का भार उतर ना पाया |
ईश्वर अपनी अदृश्य दृष्टि से
 समदृष्टि से देख रहा है सब को
 कोई और न मिला जो समझे समझाए  
ईश्वर की इस अदृश्य लीला को |
किया जिसने विश्वास प्रभू पर सच्चे मन से
उसका  ही बेड़ा पार हुआ
भवसागर के इस  भवर जाल  से
पहुंचा उसपार किनारे बिना किसी  बाधा के  |
आशा

17 अगस्त, 2020

परिवर्तन

                           देखे कई उतार चढ़ाव
इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में  |
 युवावस्था आते ही
भोला बचपन  तिरोहित हुआ
दुनियादारी में ऐसा उलझा
परिवर्ता आया व्यक्तित्व में |
 बचपन में था हंसमुख चंचल
 अब ओढ़ी गाम्भीर्य की चादर
खुद का व्यक्तित्व किया समर्पित
 दुनियादारी की इस  दौड़ में |
युवावस्था  भी बीत चली 
 जब दी  दस्तक वृद्धावस्था ने
अंग हुए शिथिल थकावत ने आ घेरा  
पहले जैसी चुस्ती फुर्ती  अब  कहाँ |
फिर से आया परिवर्तन अब
देखी एक बड़ी समानता
बचपन और वृद्धावस्था में
हर बात पर जिद्द करना 
कई बार   कहने पर एक बार सुनना
हर समय मनमानी करना |
कथनी और करनी में आया बड़ा अंतर  
मन की बात किसी से न कही
अन्दर ही मन में  घुटते   रहे
परेशानी न बांटी किसी से अंतर्मुखी हुए |
पराश्रित हुए हर छोटे से कार्य के लिए
बचपन की तरह जिए   
अकेले ही जीवन की  गाड़ी खींच  रहे
 बड़ी समानता देखी है यही |
 बचपन बीता खेलकूद में
अब अकेले ही उलझे हुए हैं
 अपनी समस्याओं के भ्रमर जाल में
कोई ऐसा न  मिला
जो समझे मनोभावों को |
वे क्या चाहते है ?
कैसे समय बिता सकते हैं ?
कहाँ तो बाहरी दुनिया में थे सक्रीय
अब हुए निष्क्रीय |
बड़ी समानता लगती है
बचपन में और बढ़ती  उम्र में
जरासी बात पर नाराज होना
                                 फिर जल्दी से न मनना
हुए हैं लाइलाज कोई नहीं समझ पाया |

आशा