प्रति दिन नैवेद्ध चढ़ाया
आरती की दिया लगाया
घंटी बजा कर की आराधाना
किया नमन ईश्वर को मन से |
पर शायद ही कभी जांचा परखा
कितनी सच्ची आस्था है मन में
या मात्र औपचारिकता निभाई है
दैनिक आदतों की तरह जीवन में |
दे रहे धोखा किसे ईश्वर को या खुद को
इतने समय भक्ति भाव में डूबे रहे
पर आस्था ने अपना रंग न जमाया
मन का भार उतर ना पाया |
ईश्वर अपनी अदृश्य दृष्टि से
समदृष्टि से देख रहा है सब को
कोई और न मिला जो समझे समझाए
ईश्वर की इस अदृश्य लीला को |
किया जिसने विश्वास प्रभू पर सच्चे मन से
उसका ही बेड़ा पार हुआ
भवसागर के इस भवर जाल से
पहुंचा उसपार किनारे बिना किसी बाधा के |
आशा