प्रति दिन नैवेद्ध चढ़ाया
आरती की दिया लगाया
घंटी बजा कर की आराधाना
किया नमन ईश्वर को मन से |
पर शायद ही कभी जांचा परखा
कितनी सच्ची आस्था है मन में
या मात्र औपचारिकता निभाई है
दैनिक आदतों की तरह जीवन में |
दे रहे धोखा किसे ईश्वर को या खुद को
इतने समय भक्ति भाव में डूबे रहे
पर आस्था ने अपना रंग न जमाया
मन का भार उतर ना पाया |
ईश्वर अपनी अदृश्य दृष्टि से
समदृष्टि से देख रहा है सब को
कोई और न मिला जो समझे समझाए
ईश्वर की इस अदृश्य लीला को |
किया जिसने विश्वास प्रभू पर सच्चे मन से
उसका ही बेड़ा पार हुआ
भवसागर के इस भवर जाल से
पहुंचा उसपार किनारे बिना किसी बाधा के |
आशा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार दिग्विजय जी |
हटाएंशिवमय जग सारा
जवाब देंहटाएंओर कोई न पालनहारा
धन्यवाद स्मिता जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर और भक्ति से ओत-प्रोत रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर टिप्पणी के लिए |
हटाएंभक्ति भाव से रची बसी बहुत सुन्दर रचना ! ऊपर वाला सबकी रक्षा करता है !
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