इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में |
युवावस्था आते ही
भोला बचपन तिरोहित हुआ
दुनियादारी में ऐसा उलझा
परिवर्ता आया व्यक्तित्व में |
बचपन में था हंसमुख चंचल
अब ओढ़ी गाम्भीर्य की चादर
खुद का व्यक्तित्व किया समर्पित
दुनियादारी की इस दौड़ में |
युवावस्था भी बीत चली
जब दी दस्तक वृद्धावस्था ने
अंग हुए शिथिल थकावत ने आ घेरा
पहले जैसी चुस्ती फुर्ती अब कहाँ |
फिर से आया परिवर्तन अब
देखी एक बड़ी समानता
बचपन और वृद्धावस्था में
हर बात पर जिद्द करना
कई बार कहने पर एक बार सुनना
कई बार कहने पर एक बार सुनना
हर समय मनमानी करना |
कथनी और करनी में आया बड़ा अंतर
मन की बात किसी से न कही
अन्दर ही मन में घुटते रहे
परेशानी न बांटी किसी से अंतर्मुखी हुए |
पराश्रित हुए हर छोटे से कार्य के लिए
बचपन की तरह जिए
बचपन की तरह जिए
अकेले ही जीवन की गाड़ी
खींच रहे
बड़ी समानता देखी है यही |
बचपन बीता खेलकूद में
अब अकेले ही उलझे हुए हैं
अपनी समस्याओं के भ्रमर जाल
में
कोई ऐसा न मिला
जो समझे मनोभावों को |
वे क्या चाहते है ?
कैसे समय बिता सकते हैं ?
कहाँ तो बाहरी दुनिया में थे सक्रीय
अब हुए निष्क्रीय |
बड़ी समानता लगती है
बचपन में और बढ़ती उम्र में
जरासी बात पर नाराज होना
फिर जल्दी से न मनना
हुए हैं लाइलाज कोई नहीं समझ पाया
|
आशा
बचपन बुढ़ापा दोनों में एक साम्य बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद स्मिता टिप्पणी के लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 17 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसूचना हेतु आभार दिग्विजय जी |
हटाएंसारगर्भित रचना।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18 -8 -2020 ) को "बस एक मुठ्ठी आसमां "(चर्चा अंक-3797) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सूचना हेतु धन्यवाद कामिनी जी |
हटाएंजीवन सामंजस्य का दूसरा नाम है ! बचपन में माता पिता पर निर्भरता होती है वृद्धावस्था में संतान पर ! समय की माँग को देखते हुए संतुलन और सामंजस्य बिठा कर चलने में ही बुद्धिमता होती है और सबका कल्याण होता है ! यथार्थपरक सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद साधना टिप्पणी के लिए|
हटाएंबीती है कि लौटी है फिर फिर
जवाब देंहटाएंदांत भी तो नहीं रहते
जबान भी तुतला जाती है।
"7 स्टेजेज ऑफ ए मैनज लाइफ" कविता की याद आई।
धन्यवाद रोहितास जी टिप्पणी के लिए |
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएं.धन्यवाद ओंकार जी टिप्पणी के लिए |
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