18 दिसंबर, 2019

मुझे न्याय चाहिए

                                                                                                                                                                                                                                                                                        

माँ मुझको न्याय चाहिए
क्या है कसूर मेरा ?
यही ना की मैं एक लड़की हूँ
चाह थी बेटे के आगमन  की  
पर मुझे पा उदासी ने घर घेरा
सभी बुझे बुझे से थे कोई उत्साह नहीं
गहरी साँसे ले रहे थे मेरे जन्म पर
पर माँ है क्या कसूर मेरा ?
जब से समझदार हुई हूँ
बहुत फर्क देखा है मैंने
 भैया में और खुद में
हर बार की वर्जनाएं व रोकाटोकी
यह करो यह ना करो केवल मुझे ही
ऐसा क्यूँ ?
मुझे भी तो हक़ है
 अपने अधिकार जानने का
मुझे न्याय चाहिए यह दुभांत किसलिए ?
 रोज  कहा जाता है मुझे पराई संपदा
क्या यह मेरा घर नहीं है ?
इसी घर में जन्मी फिर पराई क्यूँ ?
मुझे इस ग्लानी से छुटकारा चाहिए
मुझको समाज से  न्याय चाहिए
यह अंतर किसलिए ?
आशा



16 दिसंबर, 2019

मन ही तो है














 मन ही तो है कागज़ की नाव सा 
बहाव के साथ बहता 
तेज बहाव के साथ वही राह पकड़ता
डगमग डगमग करता |
या तराजू के काँटों सा
पल में  तोला पल में  माशा
है अजब  तमाशा इस  का
कहने को तो है  पूरा  नियंत्रित
पर कोई भी वादा नहीं किसी से
 चाहे जब  परिवर्तित होता  
कभी प्यार से सराबोर होता
कभी वितृष्ण  का स्त्राव होता 
कहीं स्थाईत्व नजर न आता
बारबार कदम डगमगाते
 मन का निर्देश पाकर
कभी हिलने का नाम न लेते
 एक ही जगह थम से  जाते
कितने भी यत्न किये 
पर समझ न पाए
है क्या इसकी मंशा ?
है स्वतंत्र उड़ान का पक्षधर
कोई बाँध न पाया इसको
कहने को तो बहुत किया संयत
फिर भी कमीं रही पूरी न हुई
तराजू का काँटा कभी इधर
तो कभी उधर हुआ
हार कर एक ही निष्कर्ष पर पहुंचे
है आखिर मन ही इस काया में
 जिसे कोई बाँध न पाया
इसकी थाह  न ले पाया |
आशा

12 दिसंबर, 2019

आनंद अलाव का

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चहरे पर मुस्कान रहती
ना कोई चिंता ना भय की लकीरें
सर्दी चाहे जितनी हो
सहन  शक्ति अपार होती
प्रातः काल जला अलाव
चारो ओर गोला बना
सर्दी से लोहा लेते
मुंह पर भाव विजय के
आते जाते बने रहते
यही तो है बचपन
किसी चुनौती से हार न मानी
अलाव की गर्मीं से सर्दी हारी
यह न  केवल बच्चों का है शगल
बड़े भी शामिल होते इसमें
बच्चे दिन में लकड़ी बीनते
लम्बी हो या छोटी
मोटी हो या पतली
पर हों  सूखी
फटे चिंदे भी साथ रखते
थैली में इकट्ठा करते
माचिस  रखना नहीं भूलते
 जब अलाव जल जाता
सब ताप सेकने आ जाते  
बड़े तो रजाई में दुबके रहते
वहीं से नसीहत देते
सावधानी बरतना
कहीं जल न जाना |
                                                                   आशा