11 मई, 2020

किसलय


बिना किसलय हुई  वीरान बगिया  
 माली की  देखरेख के बिना
माली उलझा अपने आप में
बिना सही  संसाधनों के |
एक समय ऐसा था
जब गुलशन परिसर में घुसते ही
सुगंध आने लगती थी
पूरी बगिया महक उठती थी
रंग बिरंगे खिलते पुष्पों से |
अब  पर्यावरण  प्रदूषण से
पुष्पों की खेती हुई प्रभावित
हरी डालियाँ सूख रहीं
कच्ची कलियाँ खिल न सकीं |
यही हाल यदि रहा
 बिना गुल होगा गुलशन बंजर
ना ही सुनाई देगा भ्रमरों का गुंजन
ना ही  उड़ेगी रंगबिरंगी तितलियाँ पुष्पों पर  |  
बच्चों का तितली पकड़ना
उनके पीछे दौड़ लगाना
बहुत आकर्षित करता है संध्या को
गुलजार गुलशन में घूमना |
वह है एक मुरझाया  किसलय
वीरान  बाग में बिना देखरेख के
या कोई माला के पुष्प सी
जिसे फैका गया उतार कर |
किसलय तभी शोभा देता है
जब तक टहनी पर लगा हो
या गुलदस्ते में सजा हो
अब क्या जरूरत उसकी |
आशा

10 मई, 2020

मातृ दिवस

आज मातृ दिवस को भेट है यह रचना -


मां की ममता पिता का प्यार
शब्दों में बयान  नहीं हो सकता
यह तो वही जानते है जिन्हें
यह नसीब नहीं होता |
हैं बहुत हतभागी वे जो
द्वार तक तो पहुंचे भी
पर रहे दूर दौनों से
कभी दुलाराए नहीं गए |
  अनुशासन का भय ऐसा रहा
यस मम्मा या नो पापा के सिवाय
कोई भी संवाद न हुआ
वे भूले दौनों का प्रेम भाव |
घर सराय में कैसे  बदला याद नहीं
कौन कब आता है ?कब जाता है?
क्या खाता है? क्या पीता है ?
इससे किसी को मतलब नहीं |
इससे तो पहले अच्छे थे
छोटे से  घर में रहते थे
 सब प्रेम के बंधन से बंधे थे
बिना कहे ही मां जान जाती थी
हम क्या चाहते थे ?
अब आधुनिकता की भेट चढ़ा जीवन
बदले प्रगाढ़ सम्बन्ध सतही में 
भेट चढ़े  आधुनिकता की जंग में  |


आशा

09 मई, 2020

हो एक बबूल का पेड़


 हो  बबूल के पेड़ जैसे
बड़ी समानता है दौनों में  
क्या लाभ बबूल से  दुनिया को
ना तो पथिक को छाँव  दे पाता  
ना ही पशुओं का भोजन बन  पाता
सड़क चलते राहगीरों को कष्ट ही दे जाता  |
कंटक भूले से यदि पैरों के नीचे आ जाए  
 लहूलुहान उन्हें  कर जाते  
तुम्हारे शब्द  कंटक होते  तीक्ष्ण
चुभ जाते  गहरे घाव कर जाते  
कितनी भी कोशिश करो
 सरलता से कंटक निकल नहीं पाते |
हो इतने कटूभाषी हर शब्द चोट पहुंचाता है
प्यार नाम की चिड़िया का कहीं पता नहीं होता
तुम रूखे इसी बबूल की पत्तियों जैसे
कहीं हरियाली नजर नहीं आती
 होली दिवाली  मुस्कुराने पर अचम्भा ही होता है
नेत्र फटे  से रह  जाते हैं अचानक हुआ परिवर्तन देख  
बबूल के पुष्प इतने नर्म कैसे हुए ?
कई बार मन में विचार आता है
कभी तो कोई कौना
ऐसा भी होता होगा  मन में
जिसमें छिपी होंगी  कोमल सी भावनाएं
जो  उभर कर आ जाती हैं
 सब के समक्ष अनजाने में |
वैसे तो बबूल में ना तो होती हरियाली
ना है वह उपयोगी छाव के लिए  
केवल भार बढ़ा रहा है भूमि पर
पर लकड़ी है काम की उसकी
 कोई भी व्यर्थ नहीं होता इस धरती पर
अच्छाई और बुराई का मेल ही है आदमी
समय की सौगात है जन्म मनुष्य का
काँटों से भरा  यह पेड़ बबूल का |
                                                आशा