14 नवंबर, 2020

प्राथमिकता


 इन्तजार करती रही

बहुत राह देखी तुम्हारी

दीपावली भी जाने लगी

तुम देश हित के लिए

ऐसे व्यस्त हुए कि

हम सब को बिसरा बैठे |

यह तक न सोचा कि

 फीका रहा होगा

 त्यौहार तुम्हारे बिना

पर तुम्हारी मजबूरी मैंने  समझी

कारण था आवश्यक

अनिवार्य उपस्थिती बोर्डर पर |

सूनी सड़क पर निगाहें टिकी थी

पर ना कोई चिठ्ठी ना तार भेजा
इतने  निर्मोही तुम कभी न थे

फिर लगा  होगी जरूरत तुम्हारी वहां

मन को संतोष दिया

 वह कार्य भी है अति आवश्यक

तभी दी प्राथमिकता होगी तुमने उसे |

देश है सर्वोपरी  सब से ऊपर  

 तुम हो एक अदना सा कण

पर है भारी जिम्मेदारी कन्धों पर

जिसे निभा रहे हो सच्चे दिल से

पूरी शिद्दत से |

आशा

 

13 नवंबर, 2020

दीपावली इस वर्ष

  

सितारे आसमान में  जगमगाएं जैसे

दीप  जगमगाएं घर पर दिवाली की  रात में 

करना है स्वागत आगत  धन लक्ष्मी का

उत्साह से भरा है सभी का मन |

छोटे से  उपहार भी प्रिय लगते बच्चों को 

नए कपडे पहन सजधज कर 

करते बटवारा फटाकों का

फिर करते इंतज़ार लक्ष्मी पूजन का |

द्वार पर रंगोली बनाई जाती 

 गृह शुद्धि के लिए पहले से ही 

घर का  कौन कौन स्वच्छ किया जाता 

रंगाई पुताई की जाती दीपक लगाए जाते |

गृह लक्ष्मियाँ अपनी भी

 सज्जा कर लेतीं रूप चौदस से 

फिर गुजिया पपड़ी बनाने में लग जातीं 

 नैवेध्य सजातीं लक्ष्मी जी के समक्ष |

लक्ष्मीं का  उसी दरवाजे से आगमन होता 

जहां स्वच्छ्ता  का साम्राज्य होता 

उस ओर मुख भी न करतीं पीठ अपनी फेर लेतीं 

जहां दरिद्रता और गंदगी  निवास करती |

हर वर्ष की तरह सभी कार्य संपन्न किये 

पर पहले जैसी रौनक न आ पाई

बच्चों ने भी वायदा किया ऊपरी मन से

 फटाकों से दूर रह  पर्यावरण को दूषित न करेंगे |

दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ 

 दीवाली ,पड़वा मनालेंगे सबके पैर पड़ेंगे 

आशीर्वाद सब का सहेज लेंगे

यह वादा किया हम से  |

आशा


 




 




12 नवंबर, 2020

मन के दीप जलाओ


 

 

 मन के दीप जलाओ कि आया 

दीपावली का त्यौहार 

यूं  तो दिए  बहुत जलाए पर

 मन के कपाट खोल न पाए |

जीवन भर प्रकाश के लिए तरसे 

अब  जागो मन का तम हरो 

दीप की रौशनी हो इतनी कि

तम का बहिष्कार हो  |

नवचेतना का हो संचार 

घर में  और दर से बाहर  भी 

सद्भावना और सदाचार का 

संचार हो आज के दूषित समाज में | 

|यही सन्देश देता दीपावली का त्यौहार |

दी जाती हैं  बैर भाव भूल सब को

 शुभ कामनाएं दिल से 

यही रहा दस्तूर इस त्यौहार का 

                                                            जिसे हमने भी आगे बढाया |

आशा



11 नवंबर, 2020

यात्रा विवरण (४)

यात्रा विवरण (४)

प्रातः काल प्रभु को  एक बार फिर से नमन कर अगले पड़ाव पर जाने के लिए प्रस्थान किया |अब अगला गंतव्य केदार नाथ था |केदार नाथ का धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्व है वह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है |चार धाम में भी इसका महत्वपूर्ण  स्थान है |बद्रीनाथ से अधिक दूर नहीं है पर मार्ग बहुत दुर्गम है |हम तो अपनी वैन से जारहे थे |प्रातःकालीन दृश्य राह के इतने सुन्दर थे कि हर जगह रुकने का मन होता था| लगभग दो घंटे बाद रुक कर स्नान ध्यान किया |हमारे साथ ही राह के समकक्ष नदी कल कल करती आगे बढ़ रही थी |नदी किनारे जहां रुके वहां बहुत सुन्दर दृश्य था |मन हुआ क्यूँ न कपडे धो लिए जाएं |जल्दी से कपड़ों को निकाला और धोबीघाट लगा लिया |हवा में बहुत जल्दी वे सूख भी गए |जल्दी जल्दी खाना खाया और आगे की और रवाना हुए |

गौरी कुंड पहुंचाते शाम हो गई |हमने एक दिन वहीं रुकने का प्रोग्राम बनाया और वहां से कुंड देखने चले गए |मौसम कुछ अधिक ही ठंडा था |दूसरे दिन सुबह हम स्टेंड पर पहुंचे तब तक बहुत से लोग तो रवाना भी हो चुके थे |वहां से एक और नए अनुभव के लिए घोड़ों पर सवारी करनी थी |घोड़ो पर सवारी का भी पहला ही तजुर्वा था |वहां पहुँच कर अलग अलग घोड़ों पर सवार हुए |रास्ते में दो घंटे बाद राम चट्टी पर पर रुके वहां

नाश्ता किया |तब तक  घोड़ों ने भी आराम कर लिया |

जब पुल के इस पार ही थे हलकी बारिश प्रारम्भ होगई थी साथ में रुई के सामान बर्फ भी गिरने लगी थी |

 |सब  ने बरसाती से अपने को ढांक रखा था इस कारण गीले नहीं हुए | जाते ही दर्शन सरलता  से हो गए और जल्दी ही बापिस लौटने की जरूरत को समझ अपने अपने घोड़ों पर सवार हुए और रवाना हुए |पर इतने अधिक थके कि उस थकान को अभी भी भूल नहीं पाए हैं |जाते समय सब जोर जोर से नारे लगा रहे थे

“जय केदार नाथ की “ |जोश भरपूर था पर जब लौटे आवाज इतनी कम थी कि पास वाले भी बहुत कठिनाई से सुन पा रहे थे |

४-५ घंटे का पौनी घोड़ों का सफर कोई मजाक नहीं था |शाम होते होते हम बापिस गौरी कुंड पहुँच गए थे |पर यह यात्रा भी  यादगार  रही |जैसे ही हरिद्वार आया |होटल की राह पकड़ी |रात भर ऐसे सोए कि सुबह कब हो गई पता ही नहीं चला |सीधे स्टेशन का रुख लिया और उज्जैन के लिए रवाना होगए |

यह हुआ

10 नवंबर, 2020

यात्राविवरण (क्रमांक ३)

यात्रा विवरण (क्रमांक ३)

ऋषिकेश से जल्दी ही चल दिए क्यों कि अब बहुत लम्बी यात्रा करनी थी |रास्ता बहुत सकरा था |बेहद चढ़ाई थी |कभी तो ऊपर से आती बसों को पहले निकालने के लिए ऊपर जाती बसों को रुकना पड़ता था |जब वे बसे निकल जातीं तब नीचे रोके गए वाहनों को जाने दिया जाता था |पर दृश्य बहुत मनोरम होते थे|कहीं कहीं तो नीचे झांक कर देखते तो भय सा लगता था |कहीं ठण्ड  लगती तब स्वेटर का सहारा लेना पड़ता |

वेन की गति धीमी रखने को कहा तब ड्राइवर ने कहा की पहुँचते पहुंचते रात हो जाएगी |आपको कहीं रात में रुकना पडेगा |जैसेतैसे रात को ९ बजे रूद्र प्रयाग पहुंचे |अब समय अधिक हो जाने के कारण रात में कहाँ  रुकें यह समस्या आई |खैर एक व्यक्ति ने बताया कि अलखनंदा नदी के किनारे एक नया मकान बना  है

वहां आप रुक सकते हैं |मैं आपको ठहराने की व्यवस्था कर देता हूँ |

हम लोग उसके साथ चल दिए |नदी के ठीक ऊपर एक कमरे में फर्श बिछा कर सभी लेट गए |पहले तो नदी के बहने की तेज आवाज सुनते रहे फिर थकान के कारण नींद आने लगी पर हलकी सी झपकी लगी थी कि खटमलों ने अटक करना प्रारम्भ कर दिया |मैंने तो रात भर जाग कर ही काट दी |सुबह ही वह स्थान छोड़ दिया और आगे  बढ़ चले |अब तक बहुत थकान होने लगी थी |जिधर नजर जाती थी उधर ही बर्फ दिखाई देती थी |ठण्ड भी अपना कमाल दिखा रही थी |बहुत ऊंचाई पर पहुँच गए थे |

एक ने हाथ दिखाया और पूंछा पीछे कितनी गाड़ी आ रही हैं |उनमें कितनी मूर्तियाँ हैं |हमारी समझ से परे थी उसकी बातें पर ड्राइवर समझ गया |उसने कहा एक आदि गाड़ी है और उसमें भी मूर्तियाँ कम ही हैं |वह व्यक्ति मुंह लटका कर चल दिया

शाम होते ही हम अपने गंतव्य के बस अड्डे पर थे |वहां भी जगह जगह पर बर्फ पड़ी हुई थी |वह व्यक्ति जो रास्ते में मिला था 

 हमारी वेंन  के निकट आ कर खड़ा हो गया और पूंछने लगा आप कहाँ जाएंगे |हमने कहा काली कमली वाले की धर्मशाला में |उसंने बताया ठीक मंदिर के पास ही एक रहने की व्यवस्था है |यदि आप को पसंद आए |हम इतने थक गए थे कि वहीं चल दिए |एक कमरे में ठहरे जिसके दरवाजे को भी बर्फ हटा कर खोला गया था |

प्रातःकाल जल्दी उठे |एक कनस्तर गर्म पानी मिल गया |झटपट नहाकर तैयार हुए |और दर्शन के लिए निकले |थोड़ी दूरी पार करने के बाद एक पुल को पार  किया नीचे अलखनंदा बहुत तीब्र गति से बह रही थी |पुल पार  करते ही मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता दिखने लगा |चेहरा प्रसन्नता से  खिल उठा | उस दिन भीड़ नहीं थी इस कारण बहुत सरलता से दर्शन हो गए |फिर दोपहर  और शाम को भी दर्शन किये|यहाँ भी भीख माँगने वालों की कमी नहीं थी |

पुल पार करना भी कठिन हुआ | शाम को बापिस आकर  दूसरे दिन की जाने की तैयारी में जुट गए |अब अगला पड़ाव था केदार नाथ का |

(क्रमशः)

आशा