अरुणिमा से भरे नीले आकाश तले
हर श्रृंगार के पत्ते पर
नाचती ,थिरकती
एक चंचल चपला सी
या नन्हीं कलिका के सम्पुट सी
दिखती ओस की एक बूंद |
कभी लगती
एक महनत कश इंसान के
श्रम कण सी ,
कभी मां के माथे पर आए स्वेद सी
या किसी सुकुमारी के
मुंह पर ठहरे जल कण सी
सच्चाई हर कण में उसके
शुद्धता संचित पूंजी उसकी |
आदित्य की प्रथम किरण
जैसे ही पड़ती उस पर
लजा कर झुका लेती आँखें
छुईमुई सी सकुचा कर
जाने कहां छुप जाती है ,
वह नन्ही सी
ओस की एक बूंद
पत्ते पर भी,
अलग थलग सी रहती
पर अस्तित्व अपना
मिटने भी नहीं देती
है छोटी सी उम्र उसकी
पर जिंदगी अनमोल उसकी |
आशा
,