वह एक बादल आवारा
इतने विशाल नीलाम्बर में
इधर उधर भटकता फिरता
साथ पवन का जब पाता |
नहीं विश्वास टिक कर रहने में
एक जगह बंधक रहने में
करता रहता स्वतंत्र विचरण
उसका यह अलबेलापन
भटकाव और दीवानापन
स्थिर मन रहने नहीं देता
कभी यहाँ कभी वहाँ
जाने कहाँ घूमता रहता |
पर कभी-कभी खुद को
वह बहुत अकेला पाता
बेचारगी से बच नहीं पाता
जब होता अपनों के समूह में
उमड़ घुमड़ कर खूब बरसता
अपने मन की बात कहता |
जब टपटप आँसू बह जाते
कुछ तो मन हल्का होता
पर यह आवारगी उसकी
उसे एक जगह टिकने नहीं देती
और चल देता अनजान सफर पर
पीछे मुड़ नहीं देखता |
आशा