ना कोई सीमा ना कोई बंधन
उड़ता फिरता मन हो अनंग ,
होता उसका विस्तार
गहन गंभीर जल निधि सा |
है बहुत सूक्ष्म पर बहु आयामी
सिलसिला विचारों का
रुकने का नाम नहीं लेता
अंत उनका नहीं होता |
मन है अंत हीन आकाश सा
गहन गंभीर धरती सा
कभी उड़ते पक्षी सा
तो कभी मोम सा |
विचरण करता केशर क्यारी में
वन उपवन की हरियाली में
कभी उदासी घर कर जाती
भटकता फिरता निर्जन वन में |
चंचल चपल संगिनी तक
प्रेम की पराकाष्ठा तक जा
विचार ठहर नहीं पाता
चंचल मन को कोई भूल नहीं पाता |
ठहराव यदि आया विचार नहीं रहता
तिरोहित हो जाता है
छिप जाता है
सृष्टि के किसी अनछुए पहलू में |
आशा
उड़ता फिरता मन हो अनंग ,
होता उसका विस्तार
गहन गंभीर जल निधि सा |
है बहुत सूक्ष्म पर बहु आयामी
सिलसिला विचारों का
रुकने का नाम नहीं लेता
अंत उनका नहीं होता |
मन है अंत हीन आकाश सा
गहन गंभीर धरती सा
कभी उड़ते पक्षी सा
तो कभी मोम सा |
विचरण करता केशर क्यारी में
वन उपवन की हरियाली में
कभी उदासी घर कर जाती
भटकता फिरता निर्जन वन में |
चंचल चपल संगिनी तक
प्रेम की पराकाष्ठा तक जा
विचार ठहर नहीं पाता
चंचल मन को कोई भूल नहीं पाता |
ठहराव यदि आया विचार नहीं रहता
तिरोहित हो जाता है
छिप जाता है
सृष्टि के किसी अनछुए पहलू में |
आशा