कॉलेज की वे यादें
आज भी भूल नहीं पाती
मन में ऐसी बसी हैं
अक्सर याद आती हैं |
प्राध्यापक थे विद्वान
अपने विषयों के मर्मग्य
उच्च स्तरीय अध्यापन निपुण
और अनुकरणीय |
विद्यार्थी कम होते थे
स्वानुशासित रहते थे
कई गतिविधियां
खेल कूद और सांस्कृतिक भी
सौहार्द्र पूर्ण होती थीं |
उनमें भाग लेने की ललक
अजीब उत्साह भारती थी
जब जीत सुनिश्चित होती थी
या पुरूस्कार मिलता था
तालियों से स्वागत
गौरान्वित करता था |
थी एक मसखरों कई टोली
था काम गेट पर खड़े रहना
आते जाते लोगों को
बिना बात छेड़ते रहना
फिर भी बंधे थे मर्यादा से |
रिक्त काल खण्डों में
बागीचा था उन की बैठक
चुटकुले और शेर शायरी
या हास परिहास में
व्यस्त रहते थे|
सब के नाम रखे गए थे
जब भी कोई चर्चा होती थी
होता था प्रयोग उनका
हँसने का सामान जुट जाता था |
हंसी मजाक और चुहलबाजी
तक सब थे सीमित
लड़के और लडकियां आपस में
यदा कडा ही मिलते थे |
दत्त चित्त हो पढते थे
प्रोफेसर की नजर बचा
कक्षा में कभी लिख कर
बातें भी करते थे |
जब भी अवसर मिलता था
शरारतों का पिटारा खुलता था
हँसते थे हंसाते थे
पर दुखी किसी को ना करते थे |
अब वैसा समय कहाँ
ना ही वैसे अध्यापक हैं
और नहीं विद्यार्थी पहले से
आज तो कॉलेज लगते हैं
राजनीति के अखाड़े से |
आशा