
आचरण समाज का
है प्याज के छिलके सा
जब तक उससे चिपका रहता
लगता सब कुछ ठीक सा |
हैं अंदर की परतें
समाज में होते परिवर्तन की
प्रतीक लगती हैं
अंदर होते विघटन की |
दिखते सभी बंधे एक सूत्र में
फिर भी छिपते एक दूसरे से
पीठ किसी की फिरते ही
खंजर घुसता पीछे से |
तीव्र गंघ आती है
किसी किसी हिस्से से
यदि काट कर न फेंका उसे
प्रभावित और भी होते जाते |
ये तो हैं अंदर की बातें
बाहर से सब एक दीखते
आवरण से ढके हुए सब
अच्छे प्याज की मिसाल दीखते |
बाह्य परत उतरते ही
स्पष्ट नजर आते
टकराव और बिखराव
उसी संभ्रांत समाज में |
है कितनी समानता
प्याज में और समाज में
छिलके उतरते ही
दौनों एकसे नजर आते |
फिर असली चेहरा नजर आता
खराब होते प्याज का
या विघटित होते समाज का
जैसे ही छीला जाता
आंखें गीली कर जाता |
आशा