प्रेम चिंतन और सकारात्मक सोच की छन्द मुक्त भेट -अनकहा सच
व्यक्तित्व के ना ना रूपों के कारण अभिव्यक्ति भी अलग अलग होती है |सहृदय व्यक्तित्व शब्द रूपी कूची से अनुभूति को उकेरता चला जाता है यह अभिव्यक्ति उसकी सृजनशीलता कहलाती है |लेकिन सवाल उठता है कि आखिर सर्जना के लिए कैसी अनुभूति चाहिये ?इसका सब से श्रेष्ठ जवाब श्री मती आशा सक्सेना ने "अनकहा सच "में बेहतर तरीके से दिया है |अपने ६९ बे वसंत पर जीवन की अनुभूतियाँ ,भावों की अभिव्यक्ति की छंद मुक्त भेट "अनकहा सच "में दी है |कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी इस छंद मुक्त उपहार में प्रेम ,चिंतन, पर्यावरण ,प्रकृति ,धर्म ,आध्यात्म ,आदि सभी कुछ समाया है |इनके धैर्य ,साहस और ऊर्जा की जितनी प्रशंसा की जाए कम है |इस उम्र में एक जिम्मेदार नारी के सारे कर्तव्य पूर्ण करने के बाद इस प्रकार की काव्य रचना काबिले तारीफ है |
जीवन रूपी रंग मंच पर सब कुछ अभिनय करने के बाद भी कुछ अनकहा सच रह ही जाता है |कवियत्री ने अपना अनकहा सच कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है -
दो बोल प्यार के बोले होते /पाते निकट अपने
नए सपने नयनों में पलते/ना रहा होता कुछ भी अनकहा |
यदि अपने मन को टटोला होता चाहत की तपिश कभी समाप्त नहीं होती -
अपनी चाहत को तुम कैसे झुटला पाओगे
मेरी चाहत की ऊंचाई ना छू पाओगे कभी
खुद ही झुलसते जाओगे उस आग की तपिश में |
उम्र के आखिती पड़ाव पर यदि अपनों का साथ ना हो तो मन दुखी हो जाता है |मन में कसक गहरी होती है-
होती है कसक
जब कोई साथ नहीं देता
जब कोई साथ नहीं देता
उम्र के इस मोड़ पर
नहीं होता चलना सरल
नहीं होता चलना सरल
लंबी कतार उलझनों की
पार पाना नहीं सहज |
अपने अतीत को कोई भला भुला पाया है अतीत पर यह देखिये -
जाने कहाँ खो गया
दूर हो गया बहुत
जब तक लौट कर आएगा
बहुत देर होजाएगी
ना पहचान पाएगा मुझे कैसे |
'प्रतिमा सौंदर्य की ' कविता महाप्राण सूर्य कान्त त्रिपाठी की कविता "वह तोडती पत्थर "की याद ताजा कर देती है | एक मजदूर स्त्री के प्रति सौन्दर्यानुभूति भाव को बखूबी प्रकट किया है -
प्रातः से संध्या तक वह तोड़ती पत्थर
भरी धूप में भी नहीं रुकती
गति उसके हाथों की |
जीवन की क्षण भंगुरता उन्हें "सूखी डाली "में दिखाई देती है -
एक दिन काटी जाएगी
उसकी जीवन लीला
हो जाएगी समाप्त
सोचती हूँ और कहानी क्या होगी
इस क्षणभंगुर जीवन की ?
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ कविता अनकहा सच की आत्मा है |कहाजाए तो कुछ अतिशयोक्ति नहीं होगी -
अब मैं लिखना चाहती हूँ
आने वाली पीढ़ी के लिए
मैं क्रान्तिकारी तो नहीं
पर सम्यक क्रान्ति चाहती हूँ
हूँ एक बुद्धिजीवी
चाहती हूँ प्रगति देश की
"एक झलक "कविता हमारे देश की आत्मीन्य्ता ,प्रेम और एकता की ओअर इशारा करती है -
इतना प्यार तुम्हें मिलेगा
डूब जाओगे अपनेपन में
गर्व करोगे अतिथि हो कर
और जब बापिस जाओगे
फिर से लौटना चाहोगे
बार बार इस देश में |
मृत्यु एक शाश्वत सत्य है -जो जन्मा है मृत्यु को अवश्य प्राप्त होता है -
होती अजर अमर आत्मा
है स्वतंत्र जीवन उसका
नष्ट कभी नहीं होता
शरीर नश्वर है
जन्म है प्रारम्भ
मृत्यु है अंत उसका |
"कुछ ना कुछ सीख देती है"रचना जीवन में उत्साह -ऊर्जा का संचार करने वाली आशा वादी रचना है -
सूरज की प्रथम किरण
भरती जीवन ऊर्जा से
कल कल बहता जल
सिखाता सतत आगे बढ़ना |
प्रत्येक व्यक्ति का जीवन एक डायरी की तरह है जिसमें अंकित होती हैं सुख -दुःख ,यादों की खट्टी मीठी बातें
डायरी का हर पन्ना कोई मिटा नहीं सकता क्यों कि -
पेन्सिल से जो भी लिखा था
रबर से मिट भी गया
पर मन के पन्नों पर जो अंकित
उसे मिटाऊँ कैसे ?
प्रेम से ही दुनिया चलती है सबसे अच्छा प्रेम वही है जिसमें त्यागहै ,
विश्वास है ,समर्पण है |"प्रेम ही जीवन है "में शायद कवियित्री यही कहना चाहती हैं -
इधर उधर भटकते हो
सुकून कहाँ से पाओगे ?
होता जीवन क्षण भंगुर
बिना प्रेम अधूरा है |
श्री मती आशा लता सक्सेना को उनके स्वान्तःसुखाय -भाव समर्पण के लिए साधुवाद |"अनकहा सच "की एक खास विशेषता जो मैं कहना चाहूँगा कि इस काव्य संकलन की सारी कवितायेँ सरल,सरस ,और प्रवाहमय हैं |कविताओं में व्यर्थ के रूपक गढ़ने की कोशिश नहीं की गयी है |लयात्मकता कविता को बार बार पद्गने को बाध्य
करती है| पुनःसरस ,पठनीय ,प्रवाहमय काव्य संकलन के लिए हार्दिक बधाई |समग्र रूप से आपकी कवितायेँ मन को प्रभावित करती हैं |