19 जून, 2012

जकड़ा चारों ने ऐसा




बीत गया बचपन
ना कोई चिंता ना कोई झंझट
समय का पंछी कब उड़ा
 याद नहीं आता
 बढ़ी उम्र दर्पण देखा
देखे  परिवर्तन
मोह जागृत हुआ
अभीलाषा ने सर उठाया
कुछ कर गुजरने की चाह ने
चैन सारा हर लिया
मन चाही कुर्सी जब पाई
मद ने दी दस्तक दरवाजे पर
नशा उसका सर चढ़ बोला
अहंकार का द्वार खुला
चुपके से उसने कदम बढ़ाया
मन में अपना डेरा जमाया
जीवन के तृतीय चरण में
माया आना ना भूली
मन मस्तिष्क पर अधिकार किया
उम्र बढ़ी मुक्ति चाही
सारी दुनियादारी से
पर माया ने हाथ मिलाया
मोह, मद, मत्सर से
सब ने मिल कर ऐसा जकड़ा
छूट न पाया उनसे
अंतिम समय तक |
आशा


17 जून, 2012

वहीँ आशियाना बनाया


थी राह बाधित कहीं न कहीं
कैसे आगे बढ़ पाती

जीवन कहीं खो गया
उसे कहाँ खोज पाती
जब भी कदम बढाने चाहे
कई बार रुके बढ़ न सके
वर्जनाओं के भार से
खुद को मुक्त ना कर सके 
जितनी बार किसी ने टोका
सही दिशा न मिल पाई
भटकाव की अति हो गयी
अंतस ने भी साथ छोड़ा
विश्वास डगमगाने लगा
आँखें धुंधलाने लगीं
 कुछ भी नजर नहीं आया
थकी हारी एक दिन
रुकी ठहरी आत्मस्थ हुई
विचार मग्न निहार रही
दूर दिखी छोटी सी गली
देख कर पक्षियों की उड़ान
और ललक आगे जाने की
इससे संबल मिला
जीवन का उत्साह बढ़ा
तभी हो कर मगन
वहीँ आशियाना बनाया
चिर प्रतीक्षा थी जिसकी
उसी को अपनाया  |

आशा 



15 जून, 2012

चाँद ने चांदनी लुटाई


 चाँद ने चांदनी लुटाई
शरद पूनम की रात में
सुहावनी मनभावनी
फैली शीतलता धरनी पर
कवि हृदय विछोह उसका
सह नहीं पाते
दूर उससे रह नहीं पाते
हैं वे हृदयहीन
जो इसे अनुभव नहीं करते
इसमें उठते ज्वार को
महसूस नहीं करते
कई बार इसकी छुअन
इसका आकर्षण
ले जाती  बीते दिनों में
वे पल जीवंत हो उठते  
आज भी यादों में
है याद मुझे वह रात
 एक बार गुजारी थी
शरद पूर्णिमा पर ताज में
अनोखा सौंदर्य लिए वह
जगमगा रहा था रात्रि  में
आयतें  जो उकेरी गईं
चमक उनकी  हुई दुगनी
उस हसीन  चांदनी में
आज भी वह दृश्य
नजर आता है
बंद पलकों  के होते ही  
बीते पल में ले जाता है
उस  शरद पूर्णिमा की
याद दिलाता है |
आशा

12 जून, 2012

मार मंहगाई की

हुआ मुख विवर्ण 
सारी रंगत गुम हो गयी 
कारण किसे बताए 
मंहगाई असीम हो गयी 
सारा राशन हुआ समाप्त 
मुंह  चिढाया डिब्बों ने 
पैसों  का डिब्बा भी खाली 
उधारी भी कितनी करती
वह कैसे घर चलाए 
बदहाली से छूट पाए
मंहगाई का यह आलम 
जाने कहाँ ले जाएगा 
और न जाने कितने
रंग दिखाएगा
दामों की सीमा पार हुई 
कुछ  भी  सस्ता नहीं
पेट्रोल की  कीमत बढ़ी 
कीमतें और बढानें लगीं 
वह देख रही  यह दारुण मंजर
भरी  भरी आँखों से
है  यह ऐसी समस्या 
सुरसा  सा मुंह है इसका
थमने का नाम नहीं लेती 
और विकृत होती जाती 
इससे कैसे जूझ पाएगी 
मन को कितना समझाएगी
किसी  की छोटी सी फरमाइश भी
दिल को छलनी कर जाएगी |
इसकी  मार है इतनी गहरी
कैसे सहन कर पाएगी |


आशा





10 जून, 2012

प्रेम और प्यार

है जाने क्या विभेद 
प्यार और प्रेम में 
हैं पर्याय एक दूसरे के 
या अर्थ भिन्न उनके 
इहिलौकिक या पारलौकिक 
आत्मिक या भौतिक
 या ऐसी भावनाएं
जो भ्रम में डुबोए रखें
ये हैं  पत्थर पर पड़ी लकीरें
जो  मिटना नहीं चाहतीं 
और मिट भी नहीं सकतीं 
चाहे जो परिवर्तन आए
या   बदलाव नहीं आए
अनेक विचार कई तर्क 
संबद्ध हुए इनसे 
यदि गहन चिंतन करें 
भावनाएं प्रवल  दिखाई देतीं 
बढते दुःख की पराकाष्ठा
जब भी मन को छू जाती 
अन्धकार में
जलते  दिए की एक किरण
दिखाई तब भी दे जाती
उसी ओर मैं खिंचता   जाता
इसे ही सुखद  संकेत मान
प्यार लिए उसका ह्रदय में
 आगे को   बढता जाता 
शायद यही प्रेम है
 या प्यार मेरा उसके  लिए
मैं उसे प्यार करता हूँ
क्यूँ कि  है वह  देश मेरा |

08 जून, 2012

है नई डगर

अनजान नगर 
नई डगर 
सभी अजनवी
सभी कुछ नया
कोई अपना नजर नहीं आता
जो भी पहले देखा सीखा
सब पीछे छूट गया
हैं यादें ही साथ
पर इसका मलाल नहीं
रीति रिवाज सभी भिन्न
नई सी हर बात
अब तक रच बस नहीं पाई
फिर भी अपनी सारी इच्छाएं
दर किनारे कर आई
जाने कब अहसास
अपनेपन का होगा
परिवर्तन जाने कब होगा
अभी तो है सभी अनिश्चित
इस डगर पर चलने के लिए
कई परीक्षाएं देनीं हैं
मन पर रखना है अंकुश
तभी तो कोई कौना यहाँ का
हो पाएगा सुरक्षित
जब सब को अपना लेगी
सफल तभी हो पाएगी 
है यह इतना सरल भी नहीं
पर वह जान गयी है
हार यदि मान  बैठी
लंबी पारी जीवन की
कैसे खेल पाएगी |
आशा