28 अगस्त, 2012
27 अगस्त, 2012
नन्हीं बूंदे वर्षा की
टप टप टपकती
झरझर झरती
नन्हीं बूँदें वर्षा की
कभी फिसलतीं
या ठहर जातीं
वृक्षों के नव किसलयों पर
गातीं प्रभाती
करतीं संगत रश्मियों की
बिखेरतीं छटा
इंद्र धनुष की
हरी भरी अवनि
मखमली अहसास लिए
ओढती चूनर धानी
हरीतिमा सब और दीखती
कण कण धरती का
भीग भीग जाता
स्वेद बिंदुओं सी
उभरतीं उस के
मस्तक पर
होती अद्वितीय
अदभुद आभा लिए
वह रूप उनका
मन हरता
तन मन वर्षा में
भीग भीग जाता |
आशा
26 अगस्त, 2012
25 अगस्त, 2012
गोरैया बचाओ
उस कार्य से मोहब्बत करो
जिससे तुम्हें सुकून मिले
कुछ शान्ति का अनुभाव हो
कुछ करने का अहसास जगे |
गौरैया बचाओ
दाना चिड़ियों को खिलाओ
पक्षिओं से प्यार करो
अपना घर आबाद करो |
आशा
24 अगस्त, 2012
असीम कृपा उसकी
किया कभी ना पूजन अर्चन
ना ही दान धर्म किया
करतल ध्वनि के साथ
ना ही भजन कीर्तन
किया
पोथी भी कोइ न पढ़ी
छप्पन व्यंजन सजा थाल में
भोग भी न लगा पाया |
पर उस पर अटल विश्वास से
कर्म किया निष्काम भाव से
हो दृढ़ संकल्प कदम बढ़ाए
निष्ठा से पूर्ण मनोयोग से
कर्म स्थली को जाना परखा
उस पर ही ध्यानकिया केंद्रित
असीम कृपा उसकी हुई
बिना मांगे मुराद मिली
तभी तो यह जान पाया
छप्पन भोग से नही कोइ नाता
है केवल वह भाव का भूखा
असीम कृपा जब उसकी होगी
कहीं कमीं नहीं होगी |
आशा
आशा
19 अगस्त, 2012
सबब उदासी का
रहती निष्प्रह नितांत अकेली
दिखती मितभाषी
स्मित मुस्कान बिखेरती
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
उदासी फिर भी छाई रहती
उससे अलग न हो पाती
पर सबब उदासी का
किसी से न बांटती
जब भी मन टटोलना चाहा
शब्द अधरों तकआकार रुक जाते
अश्रुओं के आवेगा में खो जाते
असहज हो अपने आप में खो जाती
फिर भी हर बात उसकी
अपनी और आकृष्ट करती
कई विचार आते जाते
पर निष्कर्ष तक न पहुच पाते
एक दिन वह चली गयी
संपर्क सूत्र तब भी ना टूटे
समाज सेवा ध्येय बनाया
पूरी निष्ठा सेअपनाया
व्यस्तता बढती गयी
उदासी फिर भी न गयी
वह दुनिया भी छोड़ गयी
कोइ उसे समझ ना पाया
क्या चाहती थी जान न पाया
था क्या राज उदासी का
समझ नहीं पाया
राज राज ही रह गया
उसी के साथ चला गया |
आशा
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