12 जून, 2014

बाई पच्चीसी





तीस दिन के तीस किस्से
काम बाली बाई के
आप भी अनभिज्ञ न होंगे
सूरतेहाल से |
होती सुबह झूठ  से
झूठ की ही खाती
एक बात भी सच न होती
सहायक केवल नाम की |
छुट्टी मनाने के चक्कर में
किसी न किसी को नित  मारती
फिर उसका नुक्ता करती
जीवन मस्ती से गुजारती |
कटोत्रा पैसे का मंजूर नहीं
देती धमकी काम छोड़ने की
आए दिन उधार मांगती
पर चुकाने की कोई तिथी नहीं |
वह चाहे कितनी मुखर हो
यदि भूले से कुछ मुंह से निकला
जान सांसत में डालती |
है महिमा उसकी अनूठी
सदा त्रास देती रहती
काम  ठीक से कभी न करती
लगती बहुत बेकाम की |

11 जून, 2014

है दुरूह




है दुरूह कंटकीर्ण मार्ग
पूरा जीवन जीना
इतना सहज नहीं
जैसा दिखाई देता |
उसी पर अग्रसर होना है
अनगिनत बाधाएं
पग पग  पर होंगी
 पार उन्हें  करना है |
ठोकर लगेगी
कंटक भी चुभेंगे
रक्तरंजित कदमों के चिन्ह
दूर तक साथ होंगे |
होगी परीक्षा तुम्हारी
धीर गंभीर धरती सा
धीरज रखना होगा
साहस सजो कर रखना होगा |
शांत मना अग्रसर होना
दृढ़ निश्चय ही तुम्हें
लक्ष्य तक पहुंचा पाएगा
जीवन सफल हो पाएगा |
आशा

09 जून, 2014

नजर पारखी


सिर झुका है
माथे पर पसीना
नयन नत
क्या छिपा रही हो
तुम ना भी बताओ
तो क्या है
तरल नयनों की भाषा से
कुछ भी न छिपता
राज ऐसा कोई नहीं
जिसे दिल महसूस न करता
धडकते दिल की
प्रेमिल कहानी
कभी छुपती नहीं
दीवानगी की हदें
जब पार होतीं
तब किसी का अक्स
तुमसा ही दीखता
नज़रों की ओट से
जो तुमने कहा
बिना बोले
हलचल मचा गया
सुख चैन लूटा
बेकल बना गया |
आशा