04 नवंबर, 2014

रिश्ता



है मन विगलित
नयन द्रवित
 बाध्य सोचने को
बनते बिगड़ते रिश्तों का
कोई नाम तो हो
रिश्ता है कोरे दीपक सा
बिना स्नेह ना टिक पाता
स्नेह वर्तिका  संयोग होता
तभी तो स्थाईत्व आता
दीपक सा उजास फैलाता 
आते जाते झोंकों से जूझता
यदि कहीं कमीं रह जाती
टूट जाता छूट जाता 
दिए सा बुझ जाता
आधा  अधूरा रह जाता
काली लकीर रह जाती
जीवन भर याद दिलाती
कभी लगता कच्चे दीपक सा
स्नेह पा  कर टूट जाता
अपने में ही सिमट जाता |
आशा

02 नवंबर, 2014

अकूत संपदा




कब तक समेटोगे
कुदरत के करिश्मों को अपनी बाहों में
विपुल संपदा सिमटी है
उसकी पनाहों में
कहीं गुम न हो जाना
घने घनेरे हरे वनों में
किसी छवि पर मोहित हो कर
आसान न होगा बाहर आना
कहती हूँ मुझे साथ ले लो
जब एक से दो होंगे
खतरा तो न होगा
 राह भटक जाने का
तुम न जाने किस घुन में रहते हो
अपनी सोच में डूबे से
हंसते हो मुस्कुराते हो
अचानक उदासी का दामन थाम लेते हो
तुम्हें कैसे कोई  समझ पाए
अच्छा नहीं  लगता 
यह उदासी का आलम
कुछ सोच कर  फिर सिमेट लेती हूँ
अपनी स्वप्नजनित 
 अदभुद तस्वीरों को
जाने कब तुम आकर सांझा करोगे
मेरे संचित इस धन को
हसोगे हँसाओगे
जीवन के रंग लौटाओगे
बांटोगे अपने संचित अनुभव
और कोई न होगा हमारे बीच |

31 अक्तूबर, 2014

उदासी



कुछ रहा ही क्या कहने को
जब गम का साथ है |
जाने क्यूं रूठी बैठी है
बिन बात उदास है |
तुझे समझना आसान नहीं
पर कोशिश तो की थी |
निगाहों से उसे  गिरा दिया
यह कैसी बात है |
एक मौक़ा तो दिया होता
यदि अपना समझती |
तू मीत उसकी होती
उसे अपना कह्ती |
अपनत्व तुझे हरपल मिलता
यूं उदास न रहती |
प्यार की ऊष्मा पा 
खुश सदा रहती |
आशा