04 नवंबर, 2014

रिश्ता



है मन विगलित
नयन द्रवित
 बाध्य सोचने को
बनते बिगड़ते रिश्तों का
कोई नाम तो हो
रिश्ता है कोरे दीपक सा
बिना स्नेह ना टिक पाता
स्नेह वर्तिका  संयोग होता
तभी तो स्थाईत्व आता
दीपक सा उजास फैलाता 
आते जाते झोंकों से जूझता
यदि कहीं कमीं रह जाती
टूट जाता छूट जाता 
दिए सा बुझ जाता
आधा  अधूरा रह जाता
काली लकीर रह जाती
जीवन भर याद दिलाती
कभी लगता कच्चे दीपक सा
स्नेह पा  कर टूट जाता
अपने में ही सिमट जाता |
आशा

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