06 नवंबर, 2014

आजा बहार आजा

गुंजन भवरों सा
उड़ना तितली सा
हर फूल उसे प्यारा
आजा बहार आजा
तेज हवा का झोंका
बाधित उड़ान करता
चोटिल पंख होते
पर रुकने का
 नाम न लेते
नव कलिकाएं
 मनमोहक  सुगंध
आकृष्ट  इतना करती
हिलमिल कर उनमें
खुद का अस्तित्व
नजर न आता
 होता  तब ठहराव नहीं
नीलाम्बर   छू 
खो जाना चाहता
आजा बहार आजा
तुझमें रम  जाना चाहता 


आशा

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Your reply here: